अजनबी ...
क्या है इस शब्द का मतलब,
इसका वजूद, इसकी हकीकत,
आइये जानते है,
समझते है इसको,
थोड़ा करीब से,
एक कहानी के ज़रिये।
एक दिन चौराहे पे, किसी से मुलाक़ात हो गयी,
क्या पता, इस मुलाक़ात में ऐसी क्या बात हो गयी,
कि कुछ पहचाने से लगे वो,
अपने तो नहीं, पर बेगाने भी न लगे वो।
कुछ दिन बीते, रातें बीती, बात कुछ और हुई,
हंसने लगे दोनों साथ, मेरी खामियाँ भी नज़रअंदाज़ हुई,
फिर कुछ ऐसा हुआ, कि क्या कहे अब,
रातों को जागना, दिन में खो जाना,
ये हाल किसको सुनाये अब।
एक रास्ता लड़के को सूझा,
उसने फ़ोन उठाया और फटाफट नंबर घुमाया,
सोच रहे हो, कि लड़की को किया फ़ोन,
और बोल दी दिल की सारी बात।
पर यहीं तो दोस्तों, एक बात समझ नहीं आती,
लड़के को था इतना डर,
कि उसकी जुबां ही उसका साथ छोड़ जाती।
फ़ोन तो घुमाया था और हाल-ए-दिल भी सुनाया था,
पर की जिससे बात, वो लड़की नहीं थी,
थी उसकी दीदी,
लड़के की दोस्त, जो उसे करीब से भी जानती ।
सोचा की कुछ मदद मिलेगी, थोड़ी हिम्मत बढ़ेगी,
पर इस बार भी उसकी किस्मत कर गयी धोखा।
आलम ये है अब, महीने हुए बात किये,
न ही लड़की मिली और हाथ से चली गयी दोस्त।
वो लड़का अब अनजान,
खुद से खुदको छुपाता घूमता है।
हंसना, खिलखिलाना भूल,
बस कहानियों में खुदको ढूंढता है।
ये थी वो अजनबी जो अपनों से भी अपनी तो हुई,
इतनी की ये लड़का ही अब खुद से अनजाना हो गया।
अगर समझ आयी कहानी,
तो लड़के के लिए दुआ कीजियेगा।
और अगर नहीं आयी,
तो पढ़ के बस मुस्कुरा दीजियेगा।
शुक्रिया।