न जाने क्यों ...
न जाने क्यों आज भी मैं, खुद को ढूंढ रहा हूँ,
Mobile और Whatsapp के ज़माने में, कलम खोज रहा हूँ,
जहाँ लोग बस मैं और खुद की दौड़ में भाग रहे है,
यहां अपनी कुर्शी पे बैठा मैं, हम को खोज रहा हूँ।
न जाने क्यों आज भी मैं, खुद को खोज रहा हूँ,
Make-up और Break-up के ज़माने में, पवित्र मन को खोज रहा हूँ,
प्यार जो बस कुछ लफ़्ज़ों में सिमट कर रह गया है,
न जाने क्यों उसको मैं, लोगों के दिलो में खोज रहा हूँ।
Freedom के इस दौर में मैं, बंधनो को खोज रहा हूँ,
Individuality के बीच में, संयुक्त परिवार खोज रहा हूँ,
आज के इस दौर में जहाँ लोग Smiley से काम चला लेते है,
न जाने क्यों इसके बीच में, मैं लम्बे Messages खोज रहा हूँ।
आज की इस तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में, स्थिरता को खोज रहा हूँ,
रुपये कमाने की भाग दौड़ में, खुशियों को खोज रहा हूँ,
आज जब लोग मिलो दूर के लोगों से Facebook और Whatsapp के ज़रिये जुड़े है,
न जाने क्यों इस बीच में, मैं रिश्तो और पड़ोसियों को खोज रहा हूँ।
Fashion के नाम पे कुछ भी पेहेन लेने के बीच, सभ्यता को खोज रहा हूँ,
Item Song के ज़माने में, मैं Family Movies खोज रहा हूँ,
आज जहाँ लोग Weekend को Party करने का इंतज़ार करते है,
न जाने क्यों मैं इस बीच, एक साथ बैठा परिवार खोज रहा हूँ।
Time Pass के इस दौर में मैं, सच्ची प्रेम कहानी को खोज रहा हूँ,
"I don't think its working anymore", कहने वाले लोगों के बीच,
कृष्णा-राधा, लैला-मजनू, शिरीन और फरहाद को खोज रहा हूँ,
21स्वी सदी के इस आधुनिक दौर में मैं, गुज़री हुई सदियों को खोज रहा हूँ।
न जाने क्यों आज भी मैं, खुद को खोज रहा हूँ।
न जाने क्यों आज भी मैं, खुद को ढूढ़ रहा हूँ।