इस शब्द का मतलब है नीर की आशा, जल की आशा। जल जो जीवन है, जिससे सब कुछ है, हम है, तुम हो, ये जहां है। उसी तरह आशाएं है जिससे हम ज़िंदा है। जिसकी वजह हर सुबह लगती है जो कल न हुआ, शायद आज होगा। इसी के साथ बस इतना ही कहूंगा की पढ़िए और अपने विचार मुझे ज़रूर बताइये।
नीर-आशा ....
मंज़िलें तो सबको मिली, राहें भी सबकी थी,
बस हम ही है, जो राहगीर की तरह भटक रहे है,
उद्देश्य की तलाश में खुदको,
न जाने किन जलती-बुझती लॉ में, झोंक रहे है।
कभी मंज़िल दिखती है तो, रास्ते खो जाते है,
कभी रास्ते मिले, तो मंज़िल का पता नहीं,
किनारे पर बैठे उस, मांझी की तरह हो गया हूँ,
जिसकी नांव तो है, पर समुद्र ही सूख गया हो।
इस अथा सागर के अवशेष में, अब किस तरह डूबकी लगाऊं,
जब पानी की एक बूँद ही नहीं, तो इसमें उतर के कहाँ जाऊं,
हाँ, शायद गेहराई नाप सकता हूँ इसकी मैं,
पर क्या फायदा ऐसे समुद्र का, इसकी गेहराई का,
जिसमे उतरने के बाद भी, इंसान भीगे न।
ऐसी ऋतू बन गया हूँ, जिसके आने का कोई महीना नहीं,
तिथि तो है, जो कहती है, कभी आऊंगा मैं भी पुर-जोर पर,
पर क्या फायदा ऐसी ऋतू का, उसके आने का,
जब उसका मज़ा लेने, पपीहा ही न हो किसी डाल पर।
मैं अकेला, जीवन के एक ऐसे मोड़ पर बैठा हूँ,
जिससे आगे जाने का मार्ग, तो मेरे सामने है,
पर उस पर कभी मैं चलूँगा नहीं,
जिसकी मंज़िल, तन्हाई में घिरा एक रास्ता हो।
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