Friday, December 11, 2015

Dawn... The Morning

This one is after quite a long time. I was just lost in the middle of some maze but, thanks to God, I am rescued hail and hearty.

I hope you will like my new poem.....

सवेरा ... 

फिर आज कई दिनों बाद नींद से जागा हूँ ,
फिर खुली है आँख, उठ बिस्तर से भागा हूँ ,
ये नई सुबह का एहसास है या पुरानी यादों की रौशनी ,
फिर अरमानो के झरोखे से बाहर झाका हूँ।

बनाते बनाते ये कभी एहसास ही नहीं हुआ ,
सपनो के महल में कही दूर खो गया ,
आज जागा तो पता चला सच्चाई का ,
फिर इस बार किले को धरती पे बनाना भूल गया।

तक़्दीर बनाने वाले ने भी खूब बनाया है ,
रेत के किलो सी तक़्दीर सबकी बनायीं ,
कभी बनती तो कभी लहरों में मिल जाती है ,
फिर इसी महल को लहरों से दूर बनाना भूल गया।

फिर आज कई दिनों बाद नींद से जागा हूँ ,
सुबह की ठंडी में बाहर निकला ,
सूरज की गर्मी को साँसों में भरे ,
फिर अरमानो के किले बनाने मैं चला।